ऋतु सावन
अति सुन्दरतम ऋतु सावन की आई बहार ।
सूर्य से तपती धरती को था, जिसका इन्तजार ।
नव किशलय का हरित विहार ।
सुन्दर, अलंकृत, सजीव मनोरम,
धानी चुनरिया पहने धरती,
अंबर को मिला इन्द्रधनुष का सतरंगी हार ।
चहुँ ओर प्रकृति का अह्लाद,
उमड़ - घुमड़ घन अम्बर छाये,
शीतल -मंद बहे पूरवैया, ठंढी परत फुहार ।
हंस पुकारे, तीतर गाये, कोयल कूँके,
करे पपीहा पीऊ - पीऊ की पुकार ।
झिंगुर बोले, मेढक की टर्-टर,
कीटफतिंगा, भवरों की मीठी गुंजार ।
बादल गरजे, बिजली चमके,
नभ से बरसत मुसलाधार ।
जुगनू रात में टिम-टिम करता,
रह-रह बरसाता वह ऐसी रसधार ।
कितना सारे पर्व - त्योहार ।
जन्माष्टमी, श्रावणी खीर, हरियाली तीज,
आई रक्षा-बंधन, भाई - बहन का प्यार ।
अमरनाथ को सावन के शुभ सोमवार ।
रून-झून, रून-झून काँवर बाजे,
गूँजे बोल - बम, बोल - बम की जयकार ।
पायल बाजे, नाचे मोर,
नाचे बृज की नारी ,कोई गावत गीत मल्हार।
प्रेम अग्नि से तपती ह्रदय में असिंचित
प्यासे मन को मिलती शीत बयार।
मेंहदी लगाती, मंगल गाती,
करे सुहागन प्रीत की मनुहार।
घर -घर झूला, झूले कामिनी ,
झूला पड़े कदम्ब की डार।
राधा के संग श्री कृष्णा झूले ,
मंद - मंद बहे यमुना धार।
अति सुन्दरतम ऋतु सावन की आयी बहार।
सूर्य से तपती धरती को था , जिसका इंतज़ार।
-लक्ष्मी सिंह
नई दिल्ली
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