आज शंकर जी मेरे घर आए हैं


आज शंकर जी मेरे घर आए हैं। 

आज शंकर जी मेरे घर आएँ   हैं। 
संग पार्वती ,गोद में गणपति लाएँ  हैं। 

त्रिनयन ,मस्तक पर चंदा ,हाथ त्रिशूल ,
सिर गंग ,डम -डम डमरू बजाएँ  हैं। 

नन्दी पर सवार ,पहनें बाघम्बर छाल ,
गले सर्प ,तन पर विभूती लगाएँ  हैं। 

मुख निरखूँ  ,आरती उतारूँ ,व्याकुल मन ,
कुछ समझ ना पाऊँ ,नैनन नीर बहाएँ हैं। 

चौका लगाऊँ ,भांग पिसूँ ,चन्दन घिसूँ ,
अक्षत चढ़ाऊँ ,आक धतूर इन्हें भांग भाएँ हैं। 

औढ़रदानी ,जग के स्वामी ,भाग्य मेरी ,
जो हँसी हँसी भोग को खाएँ हैं। 

जग का पालनहरा ,दुनिया का रखवाला ,
इस कुटिया में आकर ,निर्धन के भाग्य जगाएँ हैं। 

आज शंकर जी मेरे घर आएं हैं। 
संग पार्वती ,गोद में गणपति लाएँ हैं। 
                                                                   -लक्ष्मी सिंह 

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