नई सदी को मिल रही ये कैसी सौगात
नयी सदी को मिल रही ये कैसा सौगात ।
भारत माता दर्द से कराह रही है आज ।
फैला धर्म - पाखंड का चारो ओर अंधकार ।
तनिक ठहर जा देश भक्त इस पर करो विचार ।
प्रेम समर्पण मिट गया फैला आतंक और अत्याचार ।
घर - घर में हो रहा है, देखो नर संहार ।
पथहीन, दिगभ्रमित नेता और भ्रष्ट है सरकार ।
काले - धंधे, रिश्वतखोरी हैं इनके व्यपार ।
गंगा मैली हो गई, वायु में भरा विकार ।
गंदा खाना खा - खा कर लोग हो रहे हैं बीमार ।
फैल रहा है संगठित अपराधकर्ता, और अअवैध कारोबार ।
दर - दर भटक रहा है शिक्षित बेरोजगार ।
कहीं बाढ, भूकम्प तो, कहीं सूखे की मार ।
फांसी पर लटक रहा है किसान होकर लाचार ।
कहीं भूख रोटी की, बेघर, फटे कपड़े जार - जार ।
कहीं गोदामों में दबा कर रखा हुआ अनाज का भंडार ।।
अपनों के आगे अपने ही हो रहें लाचार ।
दूर हो रहें हैं आज परिवार से परिवार ।
आज हर रिश्तों में पड़ रही दरार ।
वृद्धा आश्रम में रो रहे हैं माता - पिता बीमार ।
ईर्ष्या, द्वेष, अन्याय और निर्दयता का व्यवहार ।
नई पीढ़ी को मिल रही ये कैसी शिक्षा और संस्कार ।
हो रहा है सरेआम नारी की अस्मत का व्यपार ।
मासूम हो रहें हैं गंदी हैवानियत का शिकार ।
आज माँ भारती हो रही है शर्मसार ।
मातृभूमि को मिल रही ये कैसा उपहार ।
सच्चे देश भक्त की देश को ज्यादा जरूरत है आज ।
क्योंकि देश के दुश्मन देश में ही बैठे हैं सेंधमार ।
रह गए हैं महापुरूषों के सपनें स्वार्थ के मझधार ।
सोचो इनके सपनों को कैसे करेंगे सकार ।
सजग हो जाओ,
समझो देश के प्रति अपना कर्तव्य और अधिकार ।
देश के प्रति हर मायने से बनो वफादार ।
चलो सच्ची श्रद्धान्जली दे, देश के लिए कुर्बान शहीदों पर ।
एक नई क्रान्ती ललाये देश में हम सब मिल कर ।
देश में अमन शान्ति लाएँगें हर किमत पर ।
रौशन करेंगे हर घर आँगन दीपों से झिलमिल कर ।
फैलाएँगे तिरंगा की शान पूरे विश्व भर ।
चलो कसम खाते हैं इस आजादी दिवस पर ।
—लक्ष्मी सिंह
नई दिल्ली
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