हे कृष्ण !फिर से धरा पर अवतार करो
गीता में लिखा है :----
यदा यदा ही धर्मस्य ग्लानिभर्वति भारत।
अभ्युत्थानमधर्मस्य तदात्मानं सृजाम्यहम।
अर्थात -जब झा भी धर्म का पतन होता है और अधर्म की प्रधानता होने लगती है, तब तब मैं अवतार लेता हूँ। अतः हे कृष्ण !अब इस कलयुग में आपका अवतार लेना आवश्यक हो गया है ,आप से विनती है की हे कृष्ण !फिर से आकर धरती पर इन कलयुगी राक्षसों और दानवों का अंत करें।
हे कृष्ण! फिर से धरा पर अवतार
हे !आनंद कंद , देवकी नन्द ,
दुखियों का उद्धार करो।
जग को बचाने ,कष्ट मिटाने ,
हे कृष्ण !
फिर से धरा पर अवतार करो।
मानव ही नहीं प्रकृति भी तड़प रहे ,
दुःख से पीड़ित हो प्राणी बिलख रहे ,
कितने कुब्जा की आँखें तरस रहे ,
करुणा औषधि की बरसात करो ,
हे प्रभु फिर से सुखी संसार करो ,
फिर गीता का अमृत दान करो '
जग को बचाने ,कष्ट मिटाने ,
हे कृष्ण!
फिर से धरा पर अवतार करो।
हे! आनंद कंद ,देवकी नन्द ,दुखियों का उद्धार करो।
जग को बचाने ,कष्ट मिटाने,हे कृष्ण !फिर से धरा पर अवतार करो।
पल -पल द्रोपदी पुकार रही ,
पग - पग दुश्शासन की है साहस बढ़ी
हे ! निर्दोष के सखा सहारे ,
अब न ज्यादा देर करो ,
कलयुग कंस का दुशासन का
अब आकर संहार करो ,
हे प्रभु! दुष्टों का नाश करो ,
फिर से कर में चक्र धरो।
जग बचाने , कष्ट मिटाने ,
हे कृष्ण !
फिर से धारा पर अवतार करो.
हे आनंद कांड , देवकी नन्द,दुखयों का उद्धार करो।
जग को बचाने , कष्ट मिटाने ,हे कृष्ण !फिर से धरा पर अवतार करो।
लाखों सुदामा, ओ मेरे कृष्णा !
आज भी जग भटक रहे ,
उसके आंसूं पोछ दो आकर ,
दुःख से पीड़ित सब बिलख रहे
शरणागत की आस की झोली
सुख वैभव से भरपूर करो।
दुखिया के दुःख अब दूर करो।
फिर से प्रभु !शंख नाद करो।
जग को बचाने ,कष्ट मिटाने,
हे कृष्ण !
फिर से धरा पर अवतार करो।
हे आनंद कंद , देवकी नन्द,दुखियन का उद्धार करो।
जग को बचाने , कष्ट मिटाने ,हे कृष्ण !फिर से धरा पर अवतार करो।
घोर अज्ञान है चारो ओर ,
प्रभु ज्ञान का प्रकाश करो ,
ईर्ष्या, द्वेष ,मद,लोभ ,छल ,प्रपंच
का नाग फुफ्कार रहे।
जाने कितने शकुनि, धृतराष्ट्र
घर- घर में अपनी चाल चल रहे ,
कलयुग कालिया ,शकुनि ,धृतराष्ट्र का
हे नाथ! गर्व अब चूर करो।
हर दिल में प्रेम का गीत भरो,
फिर से बंसी मुख अधर धरो।
जग को बचने कष्ट मिटने
हे कृष्ण!
फिर से धरा पर अवतार धरो।
आनंद ,कन्द , देवकी नन्द,दुखियो का उद्धार करो।
जग को बचने, कष्ट मिटने ,हे कृष्ण !फिर से धरा पर अवतार करो।
- लक्ष्मी सिंह
-नई दिल्ली
Comments
Post a Comment