भैया





दूर होकर भी पास,
मुलायम दुब पर
शबनमी एहसास हैं भैया ।,

छलके मेरी आँखों से,
यादों के झरोखों में,
बसा संसार हैं भैया ।

सारी खुशियाँ जिसमें मिल गए,
पंखुड़ी - पंखुड़ी सहेजे गए,
सतत् व्यवहार हैं भैया ।

रूठे तो मुकर जाते हैं,
जो टूटे तो बिखर जातें हैं,
फूलों का ऐसा पराग हैं भैया ।

बेवजह रूठना,
खुद ही मान जाना,
कभी गुस्सा,
 तो कभी प्यार हैं भैया ।

ये बंधन नेह से भरा,
कच्चे धागे सूत का,
राखी का त्योहार हैं भैया ।

मधुर,  पावन, निश्च्छल
माँ के मन सा कोमल,
पिता सा दुलार हैं भैया ।
             - लक्ष्मी सिंह
               नई दिल्ली 

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