ऐ!मेरी बेटी




ऐ मेरी बेटी!
मैं दुनिया से लड़ कर,
 तुम्हें इस दुनिया में लाई हूँ ।
मैं माँ! हूँ, माँ!
नहीं कोई कसाई हूँ ।
मेरी बेटी नहीं, मेरा अभिमान बन कर रहना ।
दुनिया में अपना नाम, सबसे ऊँचे शिखर पर रखना ।।

वारिस चाहिए था घर को,
इस घर का मान रखना ।
गृहलक्ष्मी का रूप बन कर,
आसमान से जमीन पर,
तुम स्वर्ग उतार कर रखना ।।
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मेरी बेटी नहीं, मेरा अभिमान बनकर रहना ।
दुनिया में अपना नाम,  सबसे ऊँचे शिखर पर रखना ।।

प्रगति के मार्ग पर तुम,
निर्भय,  निडर तुम बढना ।
मिले रास्ता कठिन तुम,
हिम्मत से आगे बढ़ना ।।
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मेरी बेटी नहीं, मेरा अभिमान बनकर रहना ।
दुनिया में अपना नाम, सबसे ऊँचे शिखर पर रखना ।।

रास्ते के  चट्टानों,  तुफानों से ना डरना ।
हौसला से आगे बढ़ना,
मंजिल पर ही जाकर रूकना ।।
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मेरी बेटी नहीं, मेरा अभिमान बनकर रहना ।
दुनिया में अपना नाम, सबसे ऊँचे शिखर पर रखना ।।

अपना हो या पराया
सबको गले लगाना ।
हर दुखियों के दिल में,
तुम रंग खुशी के भरना ।।
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मेरी बेटी नहीं, मेरा अभिमान बनकर रहना ।
दुनिया में अपना नाम, सबसे ऊँचे शिखर पर रखना ।।

दुनिया में मानवता का,
तुम दिया जलाना ।
कुछ काम ऐसा करना,
सदियों तक याद करे जमाना ।।
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मेरी बेटी नहीं, मेरा अभिमान बनकर रहना ।
दुनिया में अपना नाम, सबसे ऊँचे शिखर पर रखना ।।
                                         —लक्ष्मी सिंह

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