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Showing posts from August, 2016

दोस्ती

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                                                                              हर किसी को,  एक दोस्त की  चाह होती है । साथ दोस्त हो, तो आसान हर राह होती है । दोस्तों की खुशी से,  दोस्त को कहाँ डाह होती है । जीवन रूपी  तपती धूप में, दोस्त तो शीतल छाँह होती है ।              लक्ष्मी सिंह                नई दिल्ली 

मेरी बेटी

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                                                        मेरे हर सुख दुःख की हमजोली है, —मेरी बेटी  मेरी सबसे अच्छी सहेली है, —मेरी बेटी  अपनी मिठी बातों से बहलाती है, —मेरी बेटी  मेरी उदास चेहरे पर खुशी लाती है, - मेरी बेटी  आँसू बहे तो, अपने हाथों से पोछती है - मेरी बेटी  मेरी सारे दर्द भूलाती है—मेरी बेटी  कोई भी जख्म हो, मलहम लगाती है - मेरी बेटी नन्हे - नन्हे हाथों से सहलाती है— मेरी बेटी  मेरी बिमारी में छुप-छुप के आँसू बहाती है- मेरी बेटी  कभी मन्नते, कभी दुआ बन जाती है - मेरी बेटी  मेरी हर रोग की दवा बन जाती है— मेरी बेटी  अपने सारे किस्सा सुनाती है —मेरी बेटी  कभी रूठती, कभी मनाती है —मेरी बेटी  मंदिर जाऊँ तो पूजा की थाल सजाती है - मेरी बेटी  कभी उत्सव, कभी त्योहार बन जाती है - मेरी बेटी  जब - ...

आसमान के काले बदरा

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आसमान के काले बदरा  आज इतना जोर से क्यों बरसा ? क्या ?  तेरा दिल भी  किसी के दर्द में तड़पा , जो इतना जोर से बरसा । क्या किसी प्रेमी को अपना प्यार याद आया , या किसी विरहन की आँखें प्रीत को तरसा । जो इतना जोर से बरसा । क्या ? तेरा दिल भी  किसी के दर्द में तड़पा, जो इतना जोर से बरसा । क्या किसी पिता को अपनी बेटी की याद आई , या किसी माँ की ममता  रात भर रोई । जो इतना जोर से बरसा । क्या ? तेरा दिल भी  किसी के दर्द में तड़पा। जो इतना जोर से बरसा । क्या किसी किसान के घर  ना जल सका चूल्हा , या किसी गरीब का बच्चा  भूख से रोया । जो इतना जोर से बरसा । क्या ? तेरा दिल भी  किसी के दर्द में तड़पा। जो इतना जोर से बरसा । क्या आतंक और दुराचारी का  बोझ बढ गया ज्यादा। ये देख धरती काँप कर रोई । जो इतना जोर से बरसा । क्या ? तेरा दिल भी किसी के दर्द में तड़पा। जो इतना...

चलो कुछ बात करते हैं

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चलो कुछ बात करते हैं  कुछ तुम अपनी कहो,  कुछ हम सुनाते हैं।  यूँ खामोश बैठने से  अच्छा है कि — कुछ गुनगुनाते हैं।  कहते हैं कि -  खामोशी बोलती है।  पर ये  इन्सानों को तोड़ती है।  चलो  इन खामोशी को  तोड़ कर मुस्कुराते हैं।  कुछ अपनी सुनाओ  कुछ हम सुनाते हैं।  जिन्दगी की कुछ खुशियाँ  कुछ परेशानियाँ बाँट लेते हैं।  चलो दोस्ती की  चटाई पर  गपशप लड़ाते हैं।  बचपन की क्या  जीवन के हर क्षण  को सुनाते हैं।   चलो कुछ बात करते हैं।  बीते दिनों की यादो  को फिर से दुहराते हैं।   कुछ तुम अपनी कहो  कुछ हम सुनाते हैं।  🌹 चलो दोस्ती की  चटाई पर  गपशप लड़ाते हैं।                                   -ल...

बाल मज़दूर

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कुछ बच्चों के बचपन कहाँ होते हैं। इनका बचपन तो  दुर्भाग्य के आगे घुटने टेके होते हैं। जिम्मेदारी की बोझ से दबे होते हैं। ये समय से पहले ही बडे़ होते हैं। हाथ में झाड़ू और पोछा, माजने को ढ़ेर सारे बरतन होते है। झूठन साफ करता ,मेज पोछता, जड़ा सी गलती पर गाली खा रहे होते हैं। पेट में आग भूख की , कचड़े के डब्बे में  कुछ खाने का सामान ढूढ रहे होतेे हैं। झपट कर छिन लेने को , कुत्ते भी तैयार खड़े होते हैं। नाज-नखरा ,फरमाईसें कहाँ, बस एक रोटी की चाह होते हैं। आँख में आँसू लिए मासुम सा चेहरा, छुप-छुप कर ये ना जाने कितना रोते हैं। माँ बाहर काम करती है,तो घर की सारी जिम्मेदारी इनके सर होते हैं। आँखों में छोटे -छोटे सपने , मर जाती है सारी ,कहाँ पूरे होते हैं। कहाँ नशीब होती है,माँ की लोरी, उनके ऊपर  छोटे भाई -बहन की जिम्मेदरी होते हैं। बचपन में ही बिना जन्म दिये माँ -पिता बन गये होते हैं। स्कूल-बस्ते कहाँ नशीब इनको , किसी खेत में मजदूरी ...

हे कृष्ण !फिर से धरा पर अवतार करो

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  गीता में लिखा है :----                                        यदा यदा ही धर्मस्य ग्लानिभर्वति  भारत।                                        अभ्युत्थानमधर्मस्य तदात्मानं  सृजाम्यहम।                                                    अर्थात -जब झा भी  धर्म  का पतन होता है और अधर्म की प्रधानता होने लगती है, तब तब मैं  अवतार  लेता हूँ। अतः हे कृष्ण !अब इस कलयुग में आपका अवतार लेना आवश्यक हो गया है , आप से विनती है की हे कृष्ण !फिर से आकर धरती पर इन कलयुगी राक्षसों और दानवों का अंत करें।         हे कृष्ण! फिर से  धरा पर अवतार   हे !आनंद कंद , देवकी नन्द , दुखियों क...

जन्माष्टमी

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आओ मनाये सब मिलकर पर्व जन्माष्टमी। गली – गली सज रहे हैं दही और हांड़ी। धूम मचाओ आओ'सब गोपाल और गोपी। नाचे – गाये करे धमाल और जमकर मस्ती। एक ना बचे चुन -चुन कर तोड़े सारे मटकी। बांध दो चाहे कोई कितनी भी ऊँची। आओ मनाये सब मिलकर पर्व जन्माष्टमी। घूम रहे हैं गली -गली दोस्तों की टोली। मन मैं उत्साह और जोश है भरी। आज तोड़ेंगे मटकी सारी की सारी । देख रहे हैं हर्षित हो कर सारे नर – नारी। जुट रहे हैं आह्लादित हो सारे नगरवासी। आओ मनाये सब मिलकर पर्व जन्माष्टमी। एक -एक कर मिलते सारे संगी साथी। हाथ से हाथ मिलते और बनते हैं मुट्ठी। एक के बाद एक चढ़ते ताल – मेल बिठाती। एकता की देखो है ये कैसी शक्ति। सब मिलकर देते हैं टक्कर तोड़ते मटकी। गोविंद आला रे की शोर मचाती। आओ मनाये मिलकर पर्व जन्माष्टमी। रिमझिम हो रही है बारिश की बुंदा-बूंदी। दिल मैं उमंग है सब के मन में भक्ति। बाल – गोपाल हो चाहे हो बूढ़ा – बूढ़ी। सम्पूर्ण वातावरण वात्सल्य से है भर उठी। सदा रहे ख़ुशी के ये पल चाह है ये सब की। आओ मनाये मिलकर पर्व जन्माष्टमी। गली – गली सज रहे...

सिंधु और शाक्षी भारत की बेटी

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सिंधु ,साक्षी जय हो ! नारी शक्ति विजय हो !  भारत की बेटी तेजोमय हो ! तुम भारत की मान हो !  तुम तिरंगा की शान हो ! तुमसे भारत महान है ! तुम देश की पहचान हो ! सिंधु ,साक्षी जय हो ! नारी शक्ति विजय हो ! भारत की बेटी तेजोमय हो ! ओलंपिक पदक जीत कर , देश का मान बढ़या।  भारत के शान का तिरंगा , तुमने विश्व में फहराया।  सिंधु, साक्षी जय हो ! नारी शक्ति विजय हो ! भारत की बेटी तेजोमय हो! नारी के बढ़ते हौसले को , समर्पित नमन हमारा। युग -युग याद रहेगा , ये भव्य कीर्ति तुम्हारा।   सिंधु , साक्षी जय हो ! नारी शक्ति विजय हो ! भारत की बेटी तेजोमय  हो ! नारी ने सभ्यता संस्कृति का  सदा ही रूप में निखारा।  जीवन की कला को  अपने हाथों से सकारा।  सिंधु , साक्षी जय हो ! नारी शक्ति विजय हो ! भारत की बेटी तेजोमय हो ! भेद भाव के दंश को  झेलती हर क्षेत्र में झंडा गारा  सदा से ही नारी ने अपनी  कार्य - कुशलता का लोहा मनवाया।  सिंधु, साक्षी जय ...

देश की बेटी

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हुआ ओलंपिक खेल समाप्त ,  आया पदक सिर्फ बेटी के हाथ।  पी वी सिंधु  और साक्षी ने , रखी अपने देश की लाज।  ओलिंपिक में पदक जीत कर,  बेटियों ने सम्पूर्ण निराशा  से लिया बचा ।  सम्पूर्ण देश को इस समय , भावुक उन्माद से दिया भीगा।  भारत माता की शान में , बेटियों में तिरंगा दिया फहरा। दो -दो पदक जीत कर , भारत का विश्व में मान दिया बढ़ा । हुआ ओलंपिक खेल समाप्त  आया पदक सिर्फ बेटी के हाथ।  जहाँ घर के बहार तक  वर्चस्व था पुरुषों का।  वहाँ बेटी ने दिया जवाब  उसके सवालों का।  मत मारो इसे अब गर्भ में  है अधिकार इसे भी जीने का।   इतिहास गवाह है ,बेटी ने  सदा मान बढ़ाया है धरा का।  आज फिर नजर आया देश को  सिंधु और साक्षी में रूप झाँसी का।  हुआ ओलंपिक खेल समाप्त  आया पदक सिर्फ बेटी के हाथ।  पी वी सिंधु और साक्षी ने  रखी अपने देश की लाज।  -लक्ष्मी सिंह ...

भाई ने भेजा उपहार

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भाई ने भेजा उपहार , जिसमें बसा था उसका प्यार।  थोड़ा नटखट थोड़ा होशियार।  गुस्सा मैं देता मुझे झार , छोटा है पर है समझदार।  चुम लेती मैं माथा उसका , होता अगर वो मेरे पास , गले लगाकर उसको करती दुलार।  खुशियां मिले उसे हज़ार।  जीवन मैं हो फूलों की बौछार। दिल से दे रही हूँ  , आशीर्वाद बार -बार। -लक्ष्मी सिंह  -नयी दिल्ली