🌹🌹&&🌹🌹
हर तरह से वो ख़ुशनुमा सा है
ज़ख़्म मेरा मगर हरा सा है

उम्र गुज़री है देखते उनको
चाँद ही आँख में बसा सा है

वो मुसाफ़िर जो चल रहा बरसो
रास्ता अब कहाँ बचा सा है

जो भी मुझको अज़ीज़ लगता है
दश्त का एक सिलसिला सा है

तुझको देखूँ तो और क्या देखूँ
तू ही मेरा लगे ख़ुदा सा है

🌹🌹🌹🌹-लक्ष्मी सिंह 💓

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