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कभी घिरते बादल और स्त्री को पढ़ा है। 
दोनों का चरित्र एक सा ही गढ़ा है। 

वे नारी सन्दर्भों की रागात्मकता है। 
नारी जीवन की जीवंतता है,सार्थकता है। 

वे नारी शोषण की मूर्तिरूपा है। 
जाने किस आशा की दृढ़ता है। 

नारी की अथक श्रमशीलता है। 
नारी के आत्मोत्सर्ग व प्रतिबद्धता है। 

दोनों में ही एक सी संघर्षशीलता है। 
एक सा अभिशप्त जीवन की दास्तां है। 

कभी उमड़ते घुमड़ते बादल को देखा है। 
नारी के समग्र दृष्टिकोण को दर्शाता है। 
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सब कुछ पाकर जीवन में कभी खुशी ना पाया। 
अपने अश्रु धारा से सदा शीतल जल बरसाया। 
बिना शिकायत बिना सहारे चलता जाता तन्हा। 
अस्तित्व नहीं है कोई अपना बनता कभी बिगड़ता। 
बिना थके चलते जाना है अपना ना कोई ठिकाना। 
दूसरों के लिए जीना मरना है दोनों की एक सी दास्तां। 
🌹🌹sp🌹🌹-लक्ष्मी सिंह 💓😃

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