गंगा

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है पवित्र पावन नदी, गंगा जिसका नाम।
बदली निर्मल नीर की , लेती नहीं विराम।। 1

सुरधुनि, सुरसरि, सुरनदी , कितने तेरे नाम।
 मिट्टी को उर्वर करे , माँ बहती अविराम।। 2

जिस पथ से गंगा बहे, देती जीवन धार।
बरसाती ममता सदा, सबको करे दुलार।। 3

परंपरा ये देश की, पर्व गीत त्यौहार।
साक्षी वेदों की रही, गंगा ही आधार।। 4

भारत की गरिमामयी, देश धर्म का मान।
जीवन मोक्षप्रदायिनी, गंगा का स्नान।। 5

अविरल निर्मल नित बहे, हो गंगा- सम्मान।
 बहने दो कलकल इसे, दे दो इतना मान।। 6

कण -कण कचरे से भरा, है विषाद के संग।
सिसक- सिसक कर रो रही, इसकी मृदुल तरंग।। 7

गंगा मैली हो गई, है वेदना अथाह।
बेसुध हो चलती रही, निश्चल पड़ा प्रवाह।। 8

जो कुछ भी नित हो रहा, गंगा जी के साथ।
पता आप को क्या नहीं, इसमें किसका हाथ।। 9

मानव अंधा हो गया, फैला रहा विकार।
आँचल गंदा कर दिया, गंगा व्यथा अपार।। 10

निशि- दिन विष से जूझती, गंगा बड़ी उदास।
रंग-रूप अब वो नहीं, ना वो बची मिठास।। 11

अनुपम सुन्दर देश ये, तुझ से ही धन धाम।
 दो मुझको आशीष नित, गंगा तुझे प्रणाम।। 12
🌹 🌹 🌹 🌹 —लक्ष्मी सिंह 💓 ☺

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