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कण-कण सुरभित रस भरा, मधुरिम हुए दिगंत।
चहुँ दिश कुसुमित यह धरा, सुषमा सरस वसंत।।

🌹 🌹 🌹 🌹 -लक्ष्मी सिंह 💓 


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