राख
विधा - दोहा
🌹🌹🌹🌹🌹🌹
राख तन पे लगाय के, बसहा बैल सवार।
शिव के दम पे है खड़ा, ये पूरा संसार।। 1
दुर्बल नारी जान के, मत करना अपमान।
चिंगारी है राख में, क्षण में लेगी जान।। 2
रिश्तों में विश्वास है, कभी न हो कमजोर।
आज राख जल हो रही , रिश्तों की हर डोर।। 3
अहंकार जो भी किया, मिटा हो गया खाक।
रूई लिपटी आग ज्यों, जलकर होती राख।। 4
नारी के उत्थान की, जोर शोर से बात।
फिर क्यों नारीआज भी, जलकर होती राख।। 5
देखो फाँसी चढ़ रहा, अपना आज किसान।
खेत जल राख हो गया, टूटा हर अरमान।। 6
बेटी से बनकर बहू ,रही निभाती धर्म।
राख जला कर के किया, आयी तनिक न शर्म।। 7
ईर्ष्या जैसी आग को, मन में कभी न राख।
जलभुन कर जीवन सदा, इसमें होता राख।। 8
मानव हठ स्वभाव तो ,चिता संग ही जाय।
रस्सी जलकर राख हो, ऐठन कभी न जाय।। 9
चिंता चिता समान है, तन मन करती राख।
एक बार जलते चिता, चिंता में दिन रात। 10
छैल छबेली मोहिनी, हँस हँस मारे आँख।
देख पड़ोसी जल मरा,बिन माचिस के राख।। 11
मानव तन नश्वर सदा, मत करना अभिमान।
शेष बचेगी राख ही, तन जलते श्मशान।। 12
🌹🌹🌹🌹 –लक्ष्मी सिंह 💓☺
Comments
Post a Comment