अच्छा लगता है।।

बारिश में भींगना ,
बूंदों को चूमना ,
गीले जुल्फों को  झटकना,
नैनों का  मटकाना ,
कितना अच्छा लगता है।

कोयल के संग कूकना 
मोर के संग नाचना
सरसों के खेतों में भागना
तितली के पीछे दौड़ना 
आज भी मन बच्चा लगता है। 

कागज का नाव बनाना
पानी में उसे बाहाना
पानी के छीटें
 एक दूजे पर डालना
बातों ही बातों में
कहीं दूर निकल जाना
कितना सच्चा लगता है।


बालू के रेत पर
घरोंदा बनाना ,मिटाना
फिर मिटाके उसे बनाना।
छोटी सी बातों पर 
 रूठना मनाना ,
समंदर की लहरों पर
 मेरा दौड़  जाना ,
सब सपना सा लगता है

बच्चों के संग खेलना
बच्चों को खेलाना 
नटखट बनना
जरा सा छेड़ना ,सताना
नाजुक सा मन आज 
भी कच्चा लगता है ।
'लक्ष्मी ' को हर सपना
सच्चा  और अच्छा लगता  है।


-लक्ष्मी सिंह
-नई दिल्ली




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