गाँव की छोरी

मैं बावरी
गाँव की छोरी ।
रूप लावण्य की
 भरी कटोरी।

मैं सवारी 
गाँव की गोरी।
चंद्रकिरण मैं
चाँद चकोरी।

नैनों की डेहरी ,
सपनों की प्रहरी। 
   मन में ख्वाइशों
 की भाव गहरी 

मैं बाँधूँ प्रीत की डोरी। 
सारी मेरी मन सा कोरी। 
मेरे चंचल नैन  कटारी। 
कच्चा माटी की अटारी।  

-लक्ष्मी सिंह 
-नई दिल्ली    

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