कान्हा




कान्हा कान्हा मैं करूँ 
मेरा कान्हा है चितचोर 

चैन चुराकर
नींद उड़ाकर 
बैठा है कित ओर 

मैं बावली 
हुई दीवानी 
क्यों न देखे मेरी ओर 
इत  उत भागूं  
 सारी रैना जागूँ 
मैं ढूढूँ चारों ओर 

मेरा सबकुछ 
लेकर छुप  गया 
मेरा नटखट नंदकिशोर 

-लक्ष्मी सिंह 
-नई दिल्ली 

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