आषाढ़ माह की प्रथम वर्षा


🌹🌹🌹🌹
आषाढ़ माह की प्रथम वर्षा, 
खिली प्रकृति सर्व जग हर्षा। 

नभ से वर्षा अमृत की धारा, 
पीकर तृप्त हुआ जग सारा। 
पूर्ण हुआ कृषक की लालसा, 
कविकालिदास की महत्वकांक्षा। 
तपती धरा को मिली शीतलता, 
प्रकृति ओढ़ी फिर चुनर नया। 

आषाढ़ माह की प्रथम वर्षा, 
खिली प्रकृति सर्व जग हर्षा। 

काँधे हल लिए चला हलवाहा, 
पायल पहन कर नाचे पपीहा। 
स्वागत गीत सुनाये कोकिला, 
मिट्टी की खुश्बू हवा में घुला। 
पहाड़ी के चोटी पे झुका मेघा, 
नभ खिला इन्द्रधनुष की आभा। 

आषाढ़ माह की प्रथम वर्षा, 
खिली प्रकृति सर्व जग हर्षा। 

हर्षित,पुलकित हर नव यौवना, 
बुढ़ापा झूमकर गाने लगा गाना। 
कागज की नाव संग बचपन लौटा, 
वृक्ष-वृक्ष नव किशलय दल फूटा। 
बाग-बगीचा लगता खीला-खीला,
पुष्प-किरीट को नव जीवन मिला। 

आषाढ़ माह की प्रथम वर्षा, 
खिली प्रकृति सर्व जग हर्षा। 

ज्येष्ठ बीता आया आषाढ़ महीना, 
नभ अच्छादित बादल का गर्जना। 
अमराई में झूले आमों का झूमका, 
जामुन के काले-काले फल पका। 
सबका उद्धार व स्वप्नों को सकारा, 
जन-जन नव जीवन,उल्लास भरा। 

आषाढ़ माह की प्रथम वर्षा, 
खिली प्रकृति सर्व जग हर्षा। 
🌹🌹🌹🌹—लक्ष्मी सिंह 💓💓

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