भाग्य जानने की उत्सुकता




















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भाग्य को जानने की आदिम उत्सुकता। 
देश की परम्परा कहो या आधुनिकता।

जो कल था,वह आज भी है,कुछ ना बदला। 
वही लोग, वही पंडित और वही विचारधारा।

आज भाग्य बता रहा है ज्योतिषी कम्प्यूटर। 
कल पूछते थे हाथ व जन्मकुंडली दिखाकर।

इन्सान कर्म और भाग्य की धूरी पर घूमता। 
एक दिन चला जाता जग से कह अलविदा।

व्यक्ति मेहनत की बात नही सोचता उतना। 
भाग्य प्रबल होने की बात सोचता जितना।

भाग्य सहारा होता जीवन का परिणाम घातक। 
घर में सुख-समृद्धि आता मेहनत के सहायक।

कर्मयोगी पुरूषार्थ का गीता ने ज्ञान दिया है। 
भाग्य की चिंता छोड़ कर्म करना सिखाया है।

वेद-पुराण भी पुरूषार्थ का श्रद्धा से गीत गाया। 
मेहनत व ताकत के आगे अपना शीश झुकाया।

पुरूषार्थी मानव में युग निर्माण की क्षमता। 
अपनी मेहनत से हाथ की लकीरें बदलता।

भाग्यवादी एक खुटें में बँधा जो पाता वो खाता। 
पुरूषार्थ रूपी स्वतंत्रता से बंचित आँसू बहाता।

यथार्थ में पुरुषार्थ करने में ही जीवन में सफलता। 
मिलेगी विकास की मंजिलें उन्नति की पराकाष्ठा।

देश, समाज, परिवार,नई पीढ़ी को उन्नत बनाना ।
अपने भाग्य नहीं पुरूषार्थ पर सदा विश्वास करना। 
🌹🌹🌹🌹—लक्ष्मी सिंह💓

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