हमारे गांव की पनिहारन ,


हमारे गांव की पनिहारन ,
नित गगरी में भरती सावन। 
🌹🌹🌹🌹🌹
 देश की संस्कृति झलकती ,
जब पनघट पर पानी खींचती। 
पेड़-पौधों को वो रोज सींचती,
राही-बटोही की प्यास बुझती।  
बूँद-बूँद सबको बाँटती जीवन,
हमारे गांव की पनिहारन.......
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चमके बिंदिया ,लचके कमरिया,
छलकत जाये माथे की गगरिया।
भींगत जाये तन की चुनरिया ,
छम-छम बाजे पाँव पायलिया।
खन-खन खनके हाथ में कंगन ,
हमारे गांव की पनिहारन.......
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बालो में सोहे फूल का गजरा।
चित चंचल,नैनो में कजरा।
एक माथे,एक कमर पे मटका।
नया रूप है  निखरा-निखरा ,
भर लायी मीठा अमृत पावन,
हमारे गांव की पनिहारन.......
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नार नवेली,है एक पहेली
घूमे अकेली,संग न सहली।
काले-घने बाल सर्पीली ,
गांव की गोरी कुछ शर्मीली।
रसीली रूप बड़ा मनभावन ,
हमारे गांव की पनिहारन.......
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 घर-घर गगरी भर पहुँचती ,
पनघट पर गीत रूहानी गाती। 
साँस-ननद की हंसी ठिठोली ,
कुछ शिकवे शिकायते भी होती।
कहीं दूर से आती हमरे आँगन ,
हमारे गांव की पनिहारन.......
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हमारे गांव की पनिहारन ,
नित गगरी में भरती सावन।
                 - लक्ष्मी सिंह 

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