प्रातःकाल




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प्रातःकालीन प्रथम सूर्य किरण, 
मंत्र मुग्ध बंधा मन का हिरण।

अचेत सृष्टि थी गहनता के कारण, 
फैला प्रकाशपूँज किया तम हरण।

रूप,रस,गंध व नवीनता का वरण, 
ईश्वरीय कलाकृति आलौकिक चित्रण।

किरणों के आगोश में धरा का समर्पण, 
हरियाली युक्त सौन्दर्य अतिआकर्षण।

पुष्प-किरीट व भ्रमरों का भ्रमण, 
खग का नभ में स्वच्छंद विचरण।

प्रकृति सौन्दर्य का अनोखा दर्पण, 
मधुमय,ज्योतिर्मय,नवजीवन अर्पण।

प्रातःकाल ब्रह्ममुहूर्त शुद्ध वातावरण, 
रोमांचकारी,स्वास्थ्यवर्धक पर्यावरण।

सस्ता,सरल,निःशुल्क औषधिग्रहण, 
आनंदित,सुखद,सुरक्षात्मक आवरण। 

🌹🌹🌹🌹-लक्ष्मी सिंह 💓

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