माँ मैं तेरी बेटा नहीं ,
माँ मैं तेरी बेटा नहीं ,
बेटा से बढ़ के बनूँगी।
तेरा ही रूप लेकर के ,
मैं आसमान में चमकूँगी।
माँ मैं पढूंगी-लिखूंगी ,
और आगे बढ़ूंगी।
माँ मैं देश का शासक ,
इंद्रा गाँधी बनूंगी।
माँ मैं लड़ूंगी अन्याय से ,
न्याय पर चलूंगी।
मै दुष्टों का संहार करने ,
झाँसी की रानी बनूँगी।
माँ मैं पकृति की जननी हूँ ,
विज्ञान को भी पढूंगी।
माँ मैं चाँद पर जाने वाली ,
कल्पना चावला बनूंगी।
माँ मैं आधुनिकता को अपनाऊंगी ,
साज-श्रृंगार को भी न छोडूंगी।
लज्जा को भी अपनाकर ,
भारतीय संस्कृति की मान रखूंगी।
माँ मैं दीन-दुखी की सेवा करुँगी ,
अपने कर्तव्य से नहीं हटूंगी।
माँ मैं प्यार और सांत्वना की ,
वर्षा करनेवाली मदर टेरेसा बनूंगी।
माँ मैं कभी सीता,तो कभी सावित्री ,
कभी गीता,तो कभी गायत्री बनूंगी।
माँ मैं वक्त आने पर
दुर्गा काली का भी रूप धरूंगी।
माँ मैं किसी से नहीं डरूंगी ,
तेरे बताये रास्ते पर
निर्भय-निडर बढ़ूंगी।
माँ मै तेरी बेटा नहीं
बेटा से बढ़कर बनूंगी।
-लक्ष्मी सिंह
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