मेरी तकदीर


💝💝💝💝💝
सब चले जाते है,
मै बंद कमरे में 
अकेली रह जाती हूँ। 
तन्हाई से लड़ती हूँ, 
उन्हीं से बाते करती हूँ। 
💝💝💝💝💝
दरो-दीवार चीखतीं है, 
खड़ा-खड़ा मुझे घूड़ती है। 
छत भी आँख में आँख डालकर ,
मुझसे कुछ पूछती है। 
💝💝💝💝💝
क्या यही है मेरी जिंदगी 
चूल्हा-चौका और काम,
ये सब करके भी 
हूँ मै बदनाम। 
नहीं करती है कोई काम  ,
घर में पड़े-पड़े करती है आराम। 
ऐसी बातों का मिलता मुझको इनाम,
जिंदगी बस रह गई नाकाम। 
💝💝💝💝💝
दीवारों पर टंगी तस्वीर ,
पढ़ रही मेरे माथे की लकीर। 
कह रही क्या यही है तेरा तकदीर ,
कुछ कर अपने लिए भी तदबीर। 
                       🌸🌸🌸🌸🌸🌸🌸🌸                        
                                                      -लक्ष्मी सिंह 💓😍

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