मेरी तकदीर
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सब चले जाते है,
मै बंद कमरे में
अकेली रह जाती हूँ।
तन्हाई से लड़ती हूँ,
उन्हीं से बाते करती हूँ।
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दरो-दीवार चीखतीं है,
खड़ा-खड़ा मुझे घूड़ती है।
छत भी आँख में आँख डालकर ,
मुझसे कुछ पूछती है।
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क्या यही है मेरी जिंदगी
चूल्हा-चौका और काम,
ये सब करके भी
हूँ मै बदनाम।
नहीं करती है कोई काम ,
घर में पड़े-पड़े करती है आराम।
ऐसी बातों का मिलता मुझको इनाम,
जिंदगी बस रह गई नाकाम।
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दीवारों पर टंगी तस्वीर ,
पढ़ रही मेरे माथे की लकीर।
कह रही क्या यही है तेरा तकदीर ,
कुछ कर अपने लिए भी तदबीर।
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-लक्ष्मी सिंह 💓😍
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