कमा कमा कर शिव किसको देते हो ,

कमा-कमा कर  शिव किसको देते हो ,  
घर में कुछ नहीं दिखता हैं। 
तीनों लोक के दाता हो शंकर ,
घर में कुछ नहीं लाते  हो। 


घर में एक दाना नहीं दिखता ,
भांग धतूरा खुद खाते हो। 
जेवर गहना  पास नहीं कुछ,
सर्प से अंग सजाते हो। 
शमशान घाट का राख लेपकर ,
बाघ का छाल पहनते हो। 
तीनों लोक के दाता हो शंकर ,
घर में नहीं कुछ  लाते हो।


कमा-कमा कर शिव किसको देते हो ,
घर में कुछ नहीं दिखता है। 
तीनों  लोक के दाता हो शंकर ,
घर में कुछ नहीं लाते हो। 


नित उठकर हम भांग पीसते हैं ,
आँचल पर ही सुखाते हैं। 
बांधा हुआ बसहा घास भी नहीं खाता ,
रस्सी पकर कर झुकाते हैं। 
आप तो ध्यान में मग्न हो शंकर, 
दूत भूत शोर मचाते हैं। 
 जब से हम आपके घर आये हैं ,
सुख नहीं दुःख ही दुःख पाते हैं। 
तीनों लोक के दाता हो शिव, 
घर में कुछ नहीं लाते हो। 


कमा - कमा कर शिव किसको देते हो ,
घर में  कुछ नहीं दिखता है। 
तीनों लोक दाता हो शिव ,
घर में कुछ नहीं लाते हो। 
           - लक्ष्मी सिंह 

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