लिखते हो।

निकाल  कर दिल अपना 
कमल  लिखते  हो।

हर दर्द को तुम 
गज़ल  लिखते हो। 

हर जख्म को तुम 
बदल-बदल लिखते हो। 

टूटे हुए खंडहरों को 
तुम महल लिखते हो। 

अश्क बहते हैं लफ़्ज़ों  से 
खुद को सबल लिखते हो।      
                                - लक्ष्मी सिंह 


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