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Showing posts from March, 2017

कमा कमा कर शिव किसको देते हो ,

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कमा-कमा कर  शिव किसको देते हो ,   घर में कुछ नहीं दिखता हैं।  तीनों लोक के दाता हो शंकर , घर में कुछ नहीं लाते  हो।  घर में एक दाना नहीं दिखता , भांग धतूरा खुद खाते हो।  जेवर गहना  पास नहीं कुछ, सर्प से अंग सजाते हो।  शमशान घाट का राख लेपकर , बाघ का छाल पहनते हो।  तीनों लोक के दाता हो शंकर , घर में नहीं कुछ  लाते हो। कमा-कमा कर शिव किसको देते हो , घर में  कुछ नहीं  दि खता है।  तीनों  लोक के दाता हो शंकर , घर में कुछ नहीं लाते हो।  नित उठकर हम भांग पीसते हैं , आँचल पर ही सुखाते हैं।  बांधा हुआ बसहा घास भी नहीं खाता , रस्सी पकर कर झुकाते हैं।  आप तो ध्यान में मग्न हो शंकर,  दूत भूत शोर मचाते हैं।   जब से हम आपके घर आये हैं , सुख नहीं दुःख ही दुःख पाते हैं।  तीनों लोक के दाता हो शिव,  घर में  कुछ नहीं लाते हो।  कमा - कमा कर शिव किसको देते हो , घर में  कुछ नहीं दि खता है।...

जिंदगी

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🌹🌹🌹🌹 जिंदगी को गुजार दो  खिलखिलाते  हँसते हँसते।   न जाने किस वक्त ,कब कहाँ , जिंदगी निकल जाए  हाथ से फिसल के।  बहुत नज़दीक से देखा है  जिंदगी को तड़पते बिलखते।  एक पल में कांटा है जिंदगी  दूसरे ही पल फूल खिलखिलाते।  वो जिंदादिल है जो  हर हाल में  मुस्कुराते  🌹🌹🌹🌹—लक्ष्मी सिंह 💓😊

मुस्कुराने से

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मुस्कुराने से उम्र मेरी बढ़ती है , दुःख-दर्द और बीमारियां घटती है।  जिंदगी पल-पल ढलती है ,  रेत की तरह मुठ्ठी से फिसलती है।  फिर क्यों न मुस्कुराते रहो  जिंदगी तो एक बार ही मिलती है।                                                - लक्ष्मी सिंह 

बेटियां

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घर आँगन की शोभा  है ये हमारी बेटियां।  इनकी हंसी से खिल उठता है  हमारे घर का कोना - कोना।                                 - लक्ष्मी सिंह 

एक माँ की विनती

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दो सद बुद्धि  जो है विपरीत बुद्धि।  ज्ञान का प्रकाश तू भर दे।  मेरे लाल को कोई कष्ट न हो  माँ मुझको इतना तू वर दे।   फूल उसे माँ सारा देदे कांटा मेरे हिस्से कर दे।    वर दे, माँ !बस इतना वर दे।  मेरे वंश का  पथ उज्जवल कर दे।                                   -लक्ष्मी सिंह 

जब बच्चे जवाब देते हैं

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जब बच्चे जवाब देते हैं,  जीवन के हर तार टूटते हैं।  शब्दों के प्रहार से , तन पे कितने बाण चलते हैं।  घायल मन ,मन के अंदर में, फिर अपनी ही गलती ढूंढते हैं।  चूक हुई कब , कैसे कहाँ पर,  खोट परवरिश में देखते हैं।  आज तक जिनके लिए जी रहे थे  आज भी उन पर मरते हैं।  पी कर अश्क का प्याला फिर  सब कुछ ईश्वर पर छोड़ते हैं . खुश रखना मेरे लाल को , इतना दिल से दुआ करते हैं।  जख्म सहकर भी उफ़ नहीं करते हैं  आशिर्वाद भरा हाथ , हमेशा बच्चो के सिर पर रखते हैं।                                         - लक्ष्मी सिंह 

लिखते हो।

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निकाल  कर दिल अपना  कमल  लिखते  हो। हर दर्द को तुम  गज़ल  लिखते हो।  हर जख्म को तुम  बदल- बदल लिखते हो।  टूटे हुए खंडहरों को  तुम महल लिखते हो।  अश्क बहते हैं लफ़्ज़ों  से  खुद को सबल लिखते हो।                                       - लक्ष्मी सिंह 

मेरी नानी माँ

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माँ तो प्यारी है मुझको  पर माँ से प्यारी नानी माँ  माँ ने मुझको जन्म दिया  पर पाली - पोसी नानी माँ।  भर कटोरी दूध पिलाती  खाली तनिक नहीं वो लाती जिस दिन थोड़ा खाली होता  नखरा  मेरे सर पर होता   हाथ मार मैं उसे भी गिराती  डाँट डपट वो मुझे लगाती  कान खिंचती आँख दिखाती  पर फिर कटोरा भर लाती थी मेरी नानी माँ।  माँ तो प्यारी है मुझको  पर माँ से प्यारी नानी माँ  माँ ने मुझको जन्म दिया  पर पाली - पोसी नानी माँ।  आँगन में वो खाट बिछाती  अपने बगल में मुझे सुलाती  राजा रानी के किस्से सुनाती  परियों की वो देश घुमाती  तारों  से वो बात कराती  चन्दा मामा से मिलवाती    हाथ से मेरा माथा सहलाती  सुन्दर - सुन्दर  गीत सुनाती  कभी कोहबर शादी - ब्याह की  भजन कीर्तन कभी नचारी  कितना मधुर गीत गाती थी मेरी नानी माँ।  माँ तो प्यारी है मुझको पर  माँ से प्यारी नानी माँ  माँ...

पापा

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मैं आपका ही रंग रूप हूँ , मैं हूँ आपका आकार पापा।  मेरा जीवन है, आप का ही आशीर्वाद पापा।  मैं जो बच्चों को देती हूँ  वो आपका ही दिया हुआ है संस्कार पापा।   कभी कहना चाही , पर ना कह पाई  की मेरे दिल में है आपके लिए  कितना प्यार पापा।  कभी आपका सर  ना झुके  न ही कभी आपका दिल दुखे  मेरी वजह से  किया है जतन  बार - बार पापा  मुझे भूलना मत चाहे कुछ भी हो  दिल के किसी कोने में  छुपा कर कर रखना प्यार पापा।  मैं आऊं या न आऊं  पर सदा करना मेरा इन्तजार पापा।  मेरे मन के आँगन में  मेरे जीवन में है  आपके यादो का बहार।                                  - लक्ष्मी सिंह  

माँ मुझे भी दुनिया में लाना

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ओ माँ! प्यारी माँ! मुझे भी दुनिया में लाना। वो छुअन,वो स्पर्श का अहसास मुझे भी कराना। ओ माँ! मुझे भी देना, अपनी ममता का साया। माँ तेरी गर्भ में सदैव सुरक्षित रहे मेरी काया। ओ माँ! मुझे भी देना, अपनी गोद का बिछौना। अपनी बाहों की झूले में ओ माँ मुझे भी झुलाना। ओ माँ! मुझे भी अपनी वो मीठी-सी लोरी सुनाना। ओ माँ इस दुनिया में मुझे भी सुरक्षित लाना। ओ माँ!मैं तेरा ही रूप हूँ अपना रूप ना मिटाना। लोगों की मत मानना, अपनी दिल की कही सुनना। ओ माँ! मुझे भी ये सुन्दर संसार दिखाना। ओ माँ! प्यारी माँ! मुझे भी दुनिया में लाना। —लक्ष्मी सिंह 

मुझे अच्छी लगती है।

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तेरी मीठी -मीठी बातें  मुझे अच्छी लगती है।  तेरी तारीफों की बरसातें  मुझे अच्छी  लगती है ।  तेरे संग बीते दिन - रातें  मुझे अच्छी लगती है।  सुन्दर सपनों  की सौगातें  मुझे अच्छी लगती है।  तुझ से छुप -छुप  के मुलाकातें  मुझे अच्छी लगती है।                                   -लक्ष्मी सिंह   

विश्व साहित्यपीडिया

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वाह वाह लाजवाब विश्व साहित्यपीडिया, साहित्यकारों के लिए एक नायाब इलेक्ट्रॉनिक मीडिया। साहित्यपीडिया एक बेहतरीन सार्थक पहल, विभिन्न साहित्यकारों के सपनों का महल। साहित्यपीडिया काव्य संग्रह एक अद्भुत उपहार, समाज के हिन्दी सृजनात्मकता को देता आधार। छोटे – बड़े साहित्यकारों के रचनाओं की दुनिया, कलकल करती बह रही मुक्त काव्य की नदियां। यह दुनिया का सबसे बड़ा साहित्य संग्रह गया बन, तरह-तरह के रचनाओं का इस पर प्रकाशन  देश के कोने-कोने से जुड़ रहे उभरते विख्यात साहित्यकार, तरह-तरह के रचनाओं का यहां भरपूर भंडार। साहित्यकारों का उद्देश्य ही है सुन्दर सतत् रचना, साहित्य की मौत ना हो, सदैव हो शब्दों की सुन्दर संरचना।  सुंदर रचनाओं की आत्मा सदैव ही रहे जिन्दा, ना हो हिन्दी साहित्य अपनी रचनाकारों पे शर्मिंदा।  साहित्यपीडिया का यह अत्यंत सराहनीय प्रयास, हो रहा साधारण व्यक्तित्व और नयी प्रतिभा का विकास।  साहित्यपीडिया द्वारा साहित्य साधना की ओर सार्थक कदम, एक निष्पक्ष एवं सतत् रचनाकारों को प्रोत्साहित करने वाल...