दर्द की बात ना करो
दर्द की बात ना करो,
हम तो दर्द में ही रहते हैं।
हर रोज घुटते-मरते हैं,
पर किसी से नहीं कहते हैं।
वक्त ने जो भी किया सितम
सब हँस-हँस कर सहते हैं।
हम तो वो गुलाब हैं जो
रोज काँटों की चुभन सहते हैं।
काँटों की चुभन सहकर भी
खिलखिला कर हँसते हैं।
किससे करे शिकायत ?
जख्म देने वाले भी तो अपने हैं।
हम तो अपने के
भीड़ में भी अकेले रहते हैं।
दर्द की बात ना करो,
हम तो दर्द में ही रहते हैं।
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