कुछ मन की कर जाऊँ
आज मैं कुछ मन की कर जाऊँ।
बिना पंख गगन में उड़ जाऊँ।
चाँद सितारे तोड़ के लाऊँ।
अपने बगिया में मैं लगाऊँ।
प्रकृति से मैं रंग चुरा लूँ।
अपने सुने मन को रंग जाऊँ।
फूलों की खुश्बू बन जाऊँ।
सब के मन को मैं महकाऊँ।
बादल के संग नाचूँ – गाऊँ।
कभी पतंगा,कभी चिड़िया बन जाऊँ।
सपनों की दुनिया मैं सजाऊँ।
परीलोक में धूम मचाऊँ।
सात सुरों की संगीत बजाऊँ।
जीवन के हर तार सजाऊँ।
आशा-निराशा की भूलभुलैया से
दूर कहीं एक नई दुनिया बसाऊँ।
जब तक हूँ मैं खुद भी जीऊँ।
औरों को भी मैं जीना सीखा दूँ।
स्वर्ग यही है नर्क यही है,
सबको मैं इतना समझाऊँ।
आज मैं कुछ मन की कर जाऊँ।
बिना पंख गगन में उड़ जाऊँ।
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