मैं पत्थर हूँ
मैं पत्थर हूँ,
चुपचाप खड़ी रहती हूँ,
ना चीखती हूँ,
ना चिल्लाती हूँ।
बस एक बूत सी बनी रहती हूँ।
ना रोती हूँ,
ना तड़पती हूँ।
बस खड़ी मुस्कुराती रहती हूँ।
कोई ठोकर भी मारे मुझे,
पलट कर वार नहीं करती हूँ।
मुझे रौद के जाने वाले से भी
कोई शिकवा,
शिकायत नहीं करती हूँ।
सिर्फ आशीर्वाद और
दुअा दिया करती हूँ।
सर्दी, गर्मी, बरसात,
हर मौसम की मार सहती हूँ।
दिन की धूप,
रात घनी अंधेरी,
सितारों से रौशन करती हूँ।
हाँ मैं पत्थर हूँ,
चुपचाप खड़ी रहती हूँ।
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