एक बिटिया लिखने बैठी चिट्ठी













चिट्ठी


💓💓💓💓
एक बिटिया लिखने बैठी चिट्ठी,
याद आई घर-आँगन की मिट्टी।

माँ की ममता,स्नेहिल-सी गोदी,

पापा की प्यार से भरी थपकी।

दादा - दादी की थी लाडली,

भाई-बहन की प्यार भरी झप्पी।
वो सखी-सहेली,स्कूल की छुट्टी, 
लड़ना,झगड़ना,हो जाना कट्टी।



एक बिटिया लिखने बैठी चिट्ठी,

याद आई घर-आँगन की मिट्टी।


विदा होकर ससुराल है आयी,
नये रिस्ते,नई पिया की नगरी।
साथ ले आई यादों की गठरी,
सिखा-समझा,संस्कार की पेटी।
एक क्षण में कैसे हो गई बड़ी,
कल थी जो छोटी-सी बच्ची।

एक बिटिया लिखने बैठी चिट्ठी,
याद आई घर आँगन की मिट्टी।

नई-नई दुनिया है स्वप्निल-सी,
आँखे नम आज संग माँ नहीं।
गुड्डा-गुड़िया वहीं कहीं पड़ी,
सामने है जिम्मेदारी खड़ी।
पापा के पलकों में पली बढ़ी,
कितनी थी अपने घर पर जिद्दी।

एक बिटिया लिखने बैठी चिट्ठी,
याद आई घर-आँगन की मिट्टी।
—लक्ष्मी सिंह💓

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