सोचो जो बेटी ना होती,




सोचो जो बेटी ना होती,
तो ये दुनिया कैसी होती?
धरती के अन्दर जो
अंकुर ना फूटती,
तो ना धरती पर जीवन होती
सोचो जो बेटी ना होती......
ना ही ये सुन्दर प्रकृति होती।
ना सागर में सीपी होती
ना ही सीप में मोती होती।
ना ही जीवन ज्योति होती।
सोचो जो बेटी ना होती.....
ना तुम होते,ना हम होते,
ना ये रिश्ते-नाते होते।
ना ही अपनेपन की बातें होती।
ना ही प्रकृति सुन्दर रंग समेटे होती।
सोचो जो बेटी ना होती....
ना ही प्यार,त्याग की भावना होती।
ना ही करूणा की बरसातें होती।
ना ये इतनी सुन्दर संसार होती।
सोचो जो बेटी ना होती..
—लक्ष्मी सिंह
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