मकरसंक्राति






भारतीय कृषक परम्परा का बोध पर्व है मकरसंक्राति।
धरती-गगन से लेकर सम्पूर्ण जनमानस के कल्याण की।
प्रकृति, कृषि, ऋतु परिवर्तन का त्योहार।
ये तीनों चीजें ही हैं जीवन का आधार।
इस पर्व में होती है सूर्यदेव की आराधना।
ये है भौतिक-अभौतिक तत्वों की आत्मा।
यह पर्व क्रियाशीलता और उत्पादन का प्रतीक।
खरमास की समाप्ति और पुण्य काल घोषित।
पूरे देश में होती है मकरसंक्राति की धूम।
मकरसंक्राति के अनेक नाम, विविध रूप।
पंजाब में माघी, उत्तर में खिचड़ी।
गुजरात और राजस्थान में उत्तरायणी।
तरह-तरह के परम्परा और संस्कृति।
विविध प्रक्रिया व पौराणिक कथाओं की रीति।
कहीं आसमान रंग-बिरंगे पतंगों से घिरा।
कहीं गुड़ तिल से बनी मिठाईयों से मूँह मीठा।
कहीं बनती खीर, कहीं चटपटी खिचड़ी।
कहीं खाते चुड़ादही के संग गुड़ की पट्टी।
भांति-भांति रीति रिवाजों द्वारा भक्ति।
खाते-पीते और करते ढेर सारी मस्ती।
संक्रांति पर देवताओं को दिया जाता है हव्य।
और अपने सभी पितरों को दिया जाता है कव्य।
कर्क व मकर राशियों में सूर्य का संक्रमण।
उत्तरी गोलार्ध सूर्य की ओर मुड़ होता उत्तरायण।
गंगासागर में प्रतिवर्ष लगता विशाल मेला।
इसी दिन कृष्ण को प्राप्त की थी यशोदा।
मकरसंक्राति के अवसर पर गंगा स्नान।
गंगा तट पर शुद्ध धी, तिल, व कंबल का दान।
इसी दिन हुआ था विवेकानंद जी का जन्म।
भगवान विष्णु ने किया मय असुर का अन्त।
इसी दिन भागीरथी गंगा सागर से जा मिली।
महाभारत काल में भीष्म पितामह ने देह त्याग की।
जीवन में लाती गति, नव चेतना,नव आस।
अधिक सक्रियता और नव उल्लास।
मकरसंक्राति है नये साल की निशानी।
ये करती वसंत के आगमन की अगुवानी।
—लक्ष्मी सिंह
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