मेरी क्या गलती थी ? (लघु कथा )
लघु कथा
गंगाराम के घर से जोर-जोर से चिल्लाने की आवाज आ रही है। गंगाराम की माँ फिर अपने बहु को पीट रही है।बहु कह रही है नहीं माँ जी। मैनें चोरी नहीं की बहुत तेज भूख लगी थी। तीन दिन हो गए कुछ नहीं खाया है। मुझे कुछ खाने को दे दो। गंगा की माँ चिल्लाती हुई कहती है, भूख लगी है बाप कमा कर रख गया है, निर्लज्ज एक बेटा तो जन्म दे ना सकी। तुझे खाना चाहिए। निरवंशा भोजन किस मुँह खाएगी। कहते हुए उसके हाथ से रोटी छिन लेती है। मुँह में उंगली डाल कर मुँह में जो रोटी के टुकड़े को दाँत काटी थी उसे भी निकाल देती है। जाने किस घड़ी इस कुलझणी ने इस घर में पैर रखी। मेरे घर को खा गई। गंगा की माँ चिल्लाती हुई गंगा को आवाज लगाई —गंगा, गंगा कहाँ मर गया देख अपनी लुगाई की करतूत फिर से चोरी कर रही है। गंगा भी आव देखा ना ताव बस जैसे माँ की कहते ही बरस पड़ा। जमकर माँ - बेटे ने जानवरों की तरह उसको तब तक पीटते रहें जब तक वह खुद थक ना गया। गंगा की पत्नी बेचारी चीखती रही। और मार खाते जाने कब बिल्कुल शांत हो गई। माँ बेटा दोनों उसे वहीं जमीन पर गिरा छोड़ कर बाहर आ गए। गंगा की पत्नी आज इस दुख से सदा के लिए मुक्त हो चूकी थी। जाते - जाते उसकी आँखें अपनी चारों बेटी को ढूंढ रही थी। जो दादी और पापा के डर से सहमी खड़ी थी। आज शायद ईश्वर को उसकी दशा देखकर दया आ गयी थी रोज रोज की इस मार से मुक्त। चारों बेटियाँ दौड़ कर माँ से चिपट गई। पर माँ तो इन्हें छोड़कर जा चूकी थी। चारों कह रही थी माँ कुछ बोलो ना कुछ बोलती क्यों नहीं। पर वह शांत खामोश हो चुकी थी सदा के लिए। उस गुनाह की सजा उसे मिली थी जो उसने कभी किया ही नहीं। कभी दुल्हन बनकर आँखों में हजारों सपने को लेकर इस घर में आईं थी। पर ये खुशी हर एक बेटी के साथ ही खत्म होती गई।बेटे की चाहत ने माँ बेटे को इतना अन्धा बना दिया था कि ये अत्याचार के सीमा को पार कर गये।आज समाज बदल रहा है पर कुछ लोग आज भी नहीं बदले हैं। बेटियाँ बेटों से किसी क्षेत्र में भी कम नहीं हैं। पर यह दोखज व्यवहार क्यों? आज भी बेटे की चाहत में भ्रूण हत्या, बहु पर अत्याचार हो रहें हैं। आखिर क्यों ?
—लक्ष्मी सिंह
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गंगाराम के घर से जोर-जोर से चिल्लाने की आवाज आ रही है। गंगाराम की माँ फिर अपने बहु को पीट रही है।बहु कह रही है नहीं माँ जी। मैनें चोरी नहीं की बहुत तेज भूख लगी थी। तीन दिन हो गए कुछ नहीं खाया है। मुझे कुछ खाने को दे दो। गंगा की माँ चिल्लाती हुई कहती है, भूख लगी है बाप कमा कर रख गया है, निर्लज्ज एक बेटा तो जन्म दे ना सकी। तुझे खाना चाहिए। निरवंशा भोजन किस मुँह खाएगी। कहते हुए उसके हाथ से रोटी छिन लेती है। मुँह में उंगली डाल कर मुँह में जो रोटी के टुकड़े को दाँत काटी थी उसे भी निकाल देती है। जाने किस घड़ी इस कुलझणी ने इस घर में पैर रखी। मेरे घर को खा गई। गंगा की माँ चिल्लाती हुई गंगा को आवाज लगाई —गंगा, गंगा कहाँ मर गया देख अपनी लुगाई की करतूत फिर से चोरी कर रही है। गंगा भी आव देखा ना ताव बस जैसे माँ की कहते ही बरस पड़ा। जमकर माँ - बेटे ने जानवरों की तरह उसको तब तक पीटते रहें जब तक वह खुद थक ना गया। गंगा की पत्नी बेचारी चीखती रही। और मार खाते जाने कब बिल्कुल शांत हो गई। माँ बेटा दोनों उसे वहीं जमीन पर गिरा छोड़ कर बाहर आ गए। गंगा की पत्नी आज इस दुख से सदा के लिए मुक्त हो चूकी थी। जाते - जाते उसकी आँखें अपनी चारों बेटी को ढूंढ रही थी। जो दादी और पापा के डर से सहमी खड़ी थी। आज शायद ईश्वर को उसकी दशा देखकर दया आ गयी थी रोज रोज की इस मार से मुक्त। चारों बेटियाँ दौड़ कर माँ से चिपट गई। पर माँ तो इन्हें छोड़कर जा चूकी थी। चारों कह रही थी माँ कुछ बोलो ना कुछ बोलती क्यों नहीं। पर वह शांत खामोश हो चुकी थी सदा के लिए। उस गुनाह की सजा उसे मिली थी जो उसने कभी किया ही नहीं। कभी दुल्हन बनकर आँखों में हजारों सपने को लेकर इस घर में आईं थी। पर ये खुशी हर एक बेटी के साथ ही खत्म होती गई।बेटे की चाहत ने माँ बेटे को इतना अन्धा बना दिया था कि ये अत्याचार के सीमा को पार कर गये।आज समाज बदल रहा है पर कुछ लोग आज भी नहीं बदले हैं। बेटियाँ बेटों से किसी क्षेत्र में भी कम नहीं हैं। पर यह दोखज व्यवहार क्यों? आज भी बेटे की चाहत में भ्रूण हत्या, बहु पर अत्याचार हो रहें हैं। आखिर क्यों ?
—लक्ष्मी सिंह

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