पेड़ और बचपन





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पेड़ सा ना कोई हितकारी, 
खाते थे फल करते सवारी।

माँ की गोद सा हर एक डाली, 
सुखमय ममता सी हरियाली।

दे दो छुटपन की वो मारामारी, 
ना भाती थी बंगला ना गाड़ी।

पेड़-सा निस्वार्थ मन की क्यारी, 
खिले थे हर चेहरे प्यारी-प्यारी।

शुद्ध हवा और अमृत बरसाती, 
पेड़-सा दूजा ना कोई उपकारी।

इन पर रहते पक्षी ढेर सारी, 
इनसे सजते जीवन हमारी।

मत काट इसको मार कुल्हाड़ी, 
पेड़ हैं हर खुशियों की प्रहरी।

लौटा दो वो बचपन हमारी, 
एक पेड़ लगाओ हर दुआरी। 
-लक्ष्मी सिंह 💓

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