ढोंगी पाखंडी










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धर्म और संन्यास की आड़ में, 
साधु का छिपा आसली चेहरा। 
ये अपराधी, आत्मघाती, 
दुराचारी कुकर्म करे चौकानेवाला। 

ये निठल्ले नशे में गोते लगाता। 
ढोंगी पाखंडियों 
की अलग होती दिनचर्या। 
दिन निकलते ही 
वे निकल जाते लेकर थैला। 
लिए हाथ में
कमंडल,चिमटाऔर डंडा। 
गेरुआ वस्त्र 
पहने, तरह-तरह के माला। 
माथे पर तिलक लगा, 
लम्बी-लम्बी दढ़ी, बालों वाला। 
कौन अपराधी,
कौन ठगी, कौन है साधू बाबा। 
पता ही नहीं चलता, 
ऐसा घोल मोल है कर डाला। 
आश्रम, मठों 
व घाटों पर डाले ये डेरा। 
वहाँ श्रद्धालु
लोग चढाते उन पर मेवा। 
फोन उठा कर
हाथों में करता गड़बड़ घोटाला। 
धर्म के नाम पर 
देखो ये गोरख धंधा करने वाला। 
मुख से बोले 
राम-राम, है अन्दर से काला। 
मागते, ठगते,
मौज उड़ाते ये ढोंगीबाबा। 
इसके सामने पढ़े-लिखे 
ज्ञानवान भी आपाहिज बना। 
ये इतने पाखंडी सबकी
ज्ञान की गठरी रह गया धरा। 
ये अपराधी 
करते तस्कर गोरख धंधा। 
देख रहा है दुनिया 
सब फिर भी बना है अंधा। 
साधु वेश में 
ढोंगी व शैतानों की तादाद बड़ी। 
फिर भी देश में 
अंधभक्तों की संख्या ना घटी। 
—लक्ष्मी सिंह 💓😊

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