मैं क्या लिखती हूँ.....
मैं क्या लिखती हूँ
और क्यों लिखती हूँ
स्वयं मैं नहीं जानती
बस लिखती हूँ..
मैं लिखती हूँ..
अपनी प्रतिभा से
यत्र-तत्र बिखरे
सौन्दर्य को
संकलित करके
एक आनंदमयी
सृष्टि करती हूँ..
मैं लिखती हूँ..
मैं सत्य,शिव
और सौंदर्य की
आलौकिक रस की
वृष्टि करती हूँ..
मैं लिखती हूँ..
इसकी अमृत धारा में
अवगाहन कर
संसार का समस्त
ताप मिटा लेती हूँ..
मैं लिखती हूँ..
मानव रस के
आलौकिक आनंद में
लीन होकर अपने को
धन्य करती हूँ..
मैं लिखती हूँ..
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