मुझे इश्क है सब से
मुझे इश्क है,
सब से..
इस जमीं से..
आसमा से..
शून्य में रहने वाले रब से..
फूलों से...
फूलों की खुश्बू से...
उस पर मंडराती,
उस तीतली से...
मुझे इश्क है,
सब से....
कोयल की कूक से....
दिल में उठती हूक से....
चट्टानों की मूक से....
मुझे इश्क है,
सब से.....
सरसराती इन हवाओं से....
रंगीनियाँ बिखरती फिजाओं...
मौसम की बदलती अदाओं से...
मुझे इश्क है,
सब से.....
तुफान को दबाएँ इन खामोश समुन्दर से....
समुन्दर की लहरों से...
शोर मचाती इन झरनों से.....
मुझे इश्क है,
सब से.....
जहाँ बचपन बीता उन गलियों से.....
जवानी की अटखेलियों से....
सुहागन की सिन्दुर से....
जिम्मेदारी की इन फूल से....
मुझे इश्क है,
सब से........
मुझे इश्क है,
सब से...
इस जमीं से...
आसमा से......
-लक्ष्मी सिंह
-नई दिल्ली
मुझे इश्क है,
सब से.....
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