मैं एक तितली होती







जिन्दगी भले ही छोटी होती।
पर मैं एक तितली सी होती।
प्रकृति सौन्दर्य सहेजे संग में।
सोभा बड़ी निराली होती।
पंख सुनहरे सजते मेरे।
मैं फूलों की रानी होती।
रंग - बिरंगी पंखों वाली।
दुनिया मेरी रंगीली होती।
मस्त हवा में उड़ती फिड़ती।
नहीं फिकर दुनिया की होती।
कभी बलखाती,कभी इतराती।
मेरी हर अदा अनोखी होती।
बाग - बाग मैं धूमा करती।
चंचल नयन मटकाती होती।
बच्चे - बड़े सभी को भाती।
सबके मन को हर्षाती होती।
रात ढले पंखनड़ियों में सोती।
अपने धुन में मस्त दिवानी होती।
पहली किरण पड़ते उड़ जाती।
करती मन की मनमानी होती।
फूलों की रस को मैं पीती।
उसकी खुशबू से नहलाई होती।
कली - कली पर बैठा करती।
मधुर संगीत सुनाती होती।
अपने कोमल पंखों से।
दुनिया पर रंग बरसाती होती।
गुपचुप बाते सब कह जाती।
मन की मेरी मन में ना होती।







-लक्ष्मी सिंह
- नई दिल्ली
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